Trendy 25silver jewelry, save up 35% off
Need help? Call Us: + 8949408835
Customer Support
kush asan original Kusha asan 28×24 inches

kush asan original Kusha asan 28×24 inches

Product Code : Kush asan

$49.00 0%off

pure kush asan for pooja

Material kush grass

Size 28×22 inches

 कुश के बिना अधूरी मानी जाती है  पूजा; रिसर्च के अनुसार नेचुरल प्रिजर्वेटिव है कुश घास, प्यूरिफिकेशन एजेंट भी होते है अथर्ववेद, मत्स्य पुराण और महाभारत में बताया है कुश का महत्व; शरीर की ऊर्जा को जमीन में जाने से रोकता है कुश वेदों और पुराणों में कुश घास को पवित्र माना गया है। इसे कुशा, दर्भ या डाभ भी कहा गया है। मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के वराह अवतार के शरीर से कुशा बनी है। हिंदू धर्म के अनुष्ठान और पूजा-पाठ में कुशा का उपयोग किया जाता है। पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान कुशा का उपयोग जरूरी है। इसके बिना तर्पण अधूरा माना गया है। कुशा की अंगूठी बनाकर तीसरी उंगली में पहनी जाती है। जिसे पवित्री कहा जाता है। ग्रंथों में बताया गया है इसके उपयोग से मानसिक और शारीरिक पवित्रता हो जाती है। पूजा-पाठ के लिए जगह पवित्र करने के लिए कुश से जल छिड़का जाता है। कुशा का उपयोग ग्रहण के समय भी किया जाता है। ग्रहण से पहले खाने-पीने की चीजों में कुशा डाली जाती है। ग्रहण काल के दौरान खाना खराब न हो और पवित्र बना रहे, इसलिए ऐसा किया जाता है। इस बारे में तमिलनाडु की SASTRA एकेडमी की रिसर्च में पता चला है कि कुश घास एक नेचुरल प्रिजर्वेटिव के रूप में काम करती है। इसका उपयोग दवाईयों में भी किया जाता है। कुश में प्यूरिफिकेशन एजेंट है। धार्मिक महत्व: अथर्ववेद, मत्स्य पुराण और महाभारत में कुशा अथर्ववेद में कुश घास के लिए कहा गया है कि इसके उपयोग से गुस्से पर कंट्रोल रहता है। इसे अशुभ निवारक औषधि भी कहा गया है। चाणक्य के ग्रंथों से पता चलता है कि कुश का तेल निकाला जाता था और उसका उपयोग दवाई के तौर पर किया जाता था। मत्स्य पुराण का कहना है कि कुश घास भगवान विष्णु के शरीर से बनी होने के कारण पवित्र मानी गई है। मत्स्य पुराण की कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर के पृथ्वी को स्थापित किया। उसके बाद अपने शरीर पर लगे पानी को झाड़ा तब उनके शरीर से बाल पृथ्वी पर गिरे और कुशा के रूप में बदल गए। इसके बाद कुशा को पवित्र माना जाता है। महाभारत के अन्य प्रसंग के अनुसार, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुशा पर रख दिया। कुशा पर अमृत कलश रखे जाने से कुशा को पवित्र माना जाने लगा। महाभारत के आदि पर्व के अनुसार राहु की महादशा में कुशा वाले पानी से नहाना चाहिए। इससे राहु के अशुभ प्रभाव से राहत मिलती है। इसी ग्रंथ में बताया गया है कि कर्ण न जब अपने पितरों का श्राद्ध में कुश का उपयोग किया था। इसलिए कहा गया है कि कुश पहनकर किया गया श्राद्ध पितरों को तृप्त करता है। ऋग्वेद में बताया गया है कि अनुष्ठान और पूजा-पाठ के दौरान कुश के आसन का इस्तेमाल होता था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध ने कुश के आसान पर बैठकर तप किया और ज्ञान प्राप्त किया। श्री कृष्ण ने कुश के आसन को ध्यान के लिए आदर्श माना है। आध्यात्मिक महत्व: शरीर की ऊर्जा को जमीन में जाने से रोकता है कुश माना जाता है की पूजा-पाठ और ध्यान के दौरान हमारे शरीर में ऊर्जा पैदा होती है। कुश के आसन पर बैठकर पूजा-पाठ और ध्यान किया जाए तो वो उर्जा पैर के जरिये जमीन में नहीं जा पाती है। इसके अलावा धार्मिक कामों में कुश की अंगूठी बनाकर तीसरी उंगली में पहनने का विधान है। ताकि आध्यात्मिक शक्ति पुंज दूसरी उंगलियों में न जाए। रिंग फिंगर यानी अनामिका के नीचे सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली है। सूर्य से हमें जीवनी शक्ति, तेज और यश मिलता है। दूसरा कारण इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकना भी है। कर्मकांड के दौरान यदि भूल से हाथ जमीन पर लग जाए, तो बीच में कुशा आ जाएगी और ऊर्जा की रक्षा होगी। इसलिए कुशा की अंगूठी बनाकर हाथ में पहनी जाती है। वैज्ञानिक महत्व: नेचुरल प्रिजर्वेटिव है कुश पूजा-पाठ और अनुष्ठानों में सुखी कुश घास का उपयोग किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि इस पवित्र घास में प्यूरिफिकेशन एजेंट होते है। इसका उपयोग दवाईयों में भी किया जाता है। कुश में एंटी ओबेसिटी, एंटीऑक्सीडेंट और एनालजेसिक कंटेंट है।